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सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सरकारी विफलताओं की कहानी

News Desk by News Desk
December 18, 2025
in देश
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सरकारी विफलताओं की कहानी
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अमित पांडे: संपादक

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बोतलबंद पानी के मानकों को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि देश के बड़े हिस्सों में लोग अभी भी साफ पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह फैसला न केवल एक कानूनी निर्णय है, बल्कि भारत की जल संकट की गहरी सच्चाई को उजागर करता है। जहां एक ओर बोतलबंद पानी के मानकों पर बहस हो रही है, वहीं करोड़ों लोग बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। यह स्थिति सरकारी नीतियों की विफलता, भ्रष्टाचार और पर्यावरणीय उपेक्षा का जीता-जागता प्रमाण है, जहां वादे तो बड़े-बड़े किए जाते हैं, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदलता।

भारत में जल संकट कोई नई समस्या नहीं है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक देश के 21 प्रमुख शहरों में भूजल समाप्त हो सकता है। दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई जैसे महानगरों में लोग पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी बदतर है, जहां कुएं सूख चुके हैं और नदियां प्रदूषित हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह टिप्पणी कि ‘लोगों के पास पीने का पानी तक नहीं है’ एक कड़वी याद दिलाती है कि हमारी प्राथमिकताएं कहां हैं। बोतलबंद पानी के मानकों पर बहस तब तक व्यर्थ है, जब तक बुनियादी जल आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की जाती। यह फैसला हमें मजबूर करता है कि हम सरकारी वादों की जांच करें, जो अक्सर खोखले साबित होते हैं।

सरकारें वर्षों से ‘हर घर जल’ जैसे कार्यक्रम चला रही हैं। जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक हर घर में नल से जल पहुंचाने का वादा किया गया था। लेकिन हकीकत क्या है? लाखों गांवों में अभी भी पाइपलाइनें नहीं बिछीं, और जहां बिछीं भी हैं, वहां पानी की गुणवत्ता संदिग्ध है। यह वादा एक झूठी उम्मीद की तरह लगता है, जहां बजट तो आवंटित होते हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं पहुंचता। नीतिगत विफलता यहां साफ दिखती है। योजना बनाते समय स्थानीय जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है। उदाहरण के लिए, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में बड़े बांध बनाने पर जोर दिया जाता है, जबकि वर्षा जल संचयन जैसी सरल तकनीकों को भुला दिया जाता है। यह नीतियां अक्सर कॉरपोरेट हितों से प्रभावित लगती हैं, जहां पानी की कमर्शियलाइजेशन को बढ़ावा दिया जाता है।

भ्रष्टाचार इस समस्या की जड़ है। जल परियोजनाओं में करोड़ों रुपये का घोटाला आम बात है। उदाहरणस्वरूप, कई राज्यों में सिंचाई परियोजनाओं में अनियमितताएं सामने आई हैं, जहां ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए गुणवत्ता से समझौता किया जाता है। जल जीवन मिशन के तहत भी कई रिपोर्ट्स में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पाइपलाइनें बिछाने के नाम पर फर्जी बिल बनाए जाते हैं, और पानी की आपूर्ति कभी शुरू नहीं होती। यह भ्रष्टाचार न केवल संसाधनों की बर्बादी करता है, बल्कि गरीबों को और गरीब बनाता है। ग्रामीण महिलाएं घंटों पानी ढोने में बिताती हैं, जबकि अधिकारी और नेता आराम से बोतलबंद पानी पीते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस असमानता को रेखांकित करता है। जब बोतलबंद पानी के मानकों पर याचिका दायर की जाती है, तो अदालत सही कहती है कि पहले बुनियादी समस्या सुलझाएं। लेकिन सरकार इस पर चुप क्यों है? क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, और सुधार की इच्छाशक्ति नहीं है।

पर्यावरणीय उपेक्षा इस संकट को और गहरा रही है। नदियों का प्रदूषण, जंगलों की कटाई और अनियोजित शहरीकरण ने जल स्रोतों को नष्ट कर दिया है। गंगा सफाई योजना पर हजारों करोड़ खर्च किए गए, लेकिन नदी अभी भी गंदी है। औद्योगिक कचरा सीधे नदियों में डाला जाता है, और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन आम है। सरकार पर्यावरण मंत्रालय को कमजोर कर रही है, जहां कॉरपोरेट्स को आसानी से मंजूरी दी जाती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसे अनियमित मानसून और सूखा, को नजरअंदाज किया जा रहा है। नीतियां पर्यावरण संरक्षण के बजाय विकास पर केंद्रित हैं, जो अल्पकालिक लाभ देती हैं लेकिन लंबे समय में विनाशकारी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार पर्यावरणीय मुद्दों पर हस्तक्षेप किया है, लेकिन कार्यान्वयन में कमी है। यह फैसला भी एक चेतावनी है कि अगर पर्यावरण की उपेक्षा जारी रही, तो जल संकट और गहराएगा।

इस स्थिति से निकलने के लिए क्या किया जाए? सबसे पहले, नीतियों को पुनर्गठित करने की जरूरत है। जल जीवन मिशन को पारदर्शी बनाया जाए, जहां स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाए। भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई हो, और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए। वर्षा जल संचयन, नदी पुनरुद्धार और वन संरक्षण जैसे कदम उठाए जाएं। सरकार को वादों से आगे बढ़कर कार्रवाई करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक अवसर है कि हम इस संकट पर ध्यान दें। अगर अब भी नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

यह फैसला हमें याद दिलाता है कि विकास की दौड़ में बुनियादी जरूरतों को भूलना कितना खतरनाक है। बोतलबंद पानी के मानकों से पहले, हर घर में साफ पानी पहुंचाना जरूरी है। सरकारी विफलताएं, भ्रष्टाचार और पर्यावरणीय लापरवाही ने इस समस्या को जन्म दिया है। अब समय है बदलाव का, वरना जल संकट हमें डुबो देगा।

Tags: Bottled Water StandardsClean Drinking Water IndiaEnvironmental NegligenceGovernment Policy FailureIndia Water CrisisJal Jeevan Mission FailureSupreme Court Water CaseWater Scarcity News
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