अमित पांडेय
सरकार ने हाल में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर टेलीकॉम कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वे अपनी नेटवर्क कनेक्टिविटी को बेहतर और सुरक्षित करें। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या दूरसंचार कंपनियां सरकार के इन निर्देशों को गंभीरता से लेती हैं? क्योंकि यही कंपनियां जब कनेक्शन बेचती हैं, तो हाई स्पीड डेटा, ज़ीरो कॉल ड्रॉप और चौबीसों घंटे नेटवर्क जैसे दावे करती हैं, लेकिन जब उपभोक्ता को दिक्कत होती है तो वही ग्राहक घंटों कस्टमर केयर पर अपनी शिकायत दर्ज कराने को मजबूर होता है।
ट्राई (TRAI) की ताज़ा रिपोर्ट (Q3, 2023) के अनुसार, भारत में औसतन 1,000 कॉल में से 7.91 कॉल ड्रॉप होती हैं, जबकि TRAI की सीमा अधिकतम 2% की है। दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम जैसे क्षेत्रों में कॉल ड्रॉप की दर 9.3% तक पहुँच चुकी है। वहीं, 4G नेटवर्क की गुणवत्ता को लेकर की गई एक स्वतंत्र रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के 62% शहरी उपयोगकर्ताओं को “पैच” नेटवर्क मिलता है—कभी चलता है, कभी नहीं।
सरकार और ट्राई ने बीते वर्षों में बार-बार निर्देश दिए कि कंपनियाँ अपने नेटवर्क टॉवर बढ़ाएं, QoS (Quality of Service) में सुधार करें और कॉल ड्रॉप को कम करें। लेकिन क्या कोई भी प्रमुख टेलीकॉम कंपनी यह दावा कर सकती है कि उसने अपने वादों को पूरी तरह निभाया है? दिल्ली जैसे महानगर में भी कई इलाकों में एक मजबूत कॉल करना मुश्किल है। एक ओर 6G ट्रायल की बात हो रही है, दूसरी ओर ग्राहकों को 2G जैसी गुणवत्ता का अनुभव मिल रहा है।
दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का 6G ट्रायल की बात करना स्वागत योग्य है, पर जब बुनियादी नेटवर्क की स्थिति ही खराब है तो नई तकनीकों की बात करना महज दिखावा लगता है। जब कंपनियाँ 5G के प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, पर ग्राहक को उसके बदले में स्थिर नेटवर्क भी नहीं मिल पाता, तो यह उपभोक्ता के साथ धोखा नहीं तो और क्या है?
दूसरी बड़ी चिंता यह है कि कंपनियों की प्राथमिकता मुनाफा है, न कि उपभोक्ता संतोष। बीते साल, Vodafone-Idea को ₹7,200 करोड़ का घाटा हुआ, जबकि Airtel ने अपने एआरपीयू (Average Revenue Per User) में बढ़ोतरी करके मुनाफे में वापसी की कोशिश की। Jio ने 2023 में ₹18,000 करोड़ से अधिक मुनाफा कमाया, लेकिन सवाल ये है कि क्या इस मुनाफे का कोई हिस्सा नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने में लगाया गया? जवाब में आंकड़े खामोश हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो और खराब है। भारत के लगभग 30% गांवों में अभी भी भरोसेमंद मोबाइल नेटवर्क नहीं है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़कों की तरह अगर प्रधानमंत्री ग्राम नेटवर्क योजना होती तो शायद आज स्थिति अलग होती। नेटवर्क विफलता का सीधा असर छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई, किसानों की मौसम और मंडी की जानकारी, और छोटे व्यापारियों की डिजिटल पेमेंट सेवाओं पर पड़ता है।
सवाल यह है कि क्या एक रात में सबकुछ सुधारा जा सकता है जब सालों से उसकी बुनियाद ही कमजोर रही हो? जब कंपनियाँ उपभोक्ता सेवा की बजाय अपने शेयर प्राइस सुधारने की होड़ में लगी हों, तब इन पर भरोसा कैसे किया जाए? सरकार जब तक इन कंपनियों से जवाबदेही नहीं लेती, उपभोक्ता को केवल झूठे विज्ञापन और खोखले वादे ही मिलते रहेंगे।
दूरसंचार सेवा सिर्फ व्यापार नहीं, अब यह जीवन की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है। चाहे वह आपदा की घड़ी हो, राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला हो, या एक छात्र की पढ़ाई—हर क्षेत्र में मजबूत और भरोसेमंद नेटवर्क जरूरी है। अगर सरकार और कंपनियां इस जरूरत को अब भी गंभीरता से नहीं लेंगी, तो आने वाला समय केवल तकनीकी दिखावे का होगा, असल सुधार का नहीं।