लेखक: अमित पांडेय
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की खाड़ी देशों – सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) – की यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को एक बार फिर झकझोर दिया है। यह यात्रा केवल व्यापारिक समझौतों तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक गहरी रणनीतिक चाल थी जिसका उद्देश्य वैश्विक शक्ति संतुलन को अमेरिका की ओर मोड़ना, BRICS जैसे बहुपक्षीय गठबंधनों को कमजोर करना और भारत जैसे देशों के लिए नई कूटनीतिक चुनौतियां पेश करना है।
डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान सऊदी अरब, UAE और कतर के साथ लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर के समझौते हुए। इनमें से अकेले सऊदी अरब के साथ 600 बिलियन डॉलर के निवेश और रक्षा समझौते हुए, जिनमें 142 बिलियन डॉलर का अब तक का सबसे बड़ा अमेरिकी रक्षा सौदा शामिल है। इस समझौते में अमेरिका से अत्याधुनिक हथियार, मिसाइल सिस्टम और रक्षा प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान होगा।
इस यात्रा का मकसद इन देशों को अमेरिका के “Abrahamic Accord 2.0” में जोड़ना था, जिससे ये देश आधिकारिक रूप से इज़राइल को मान्यता दें और अमेरिका के साथ मिलकर एक नया रणनीतिक गठबंधन बनाएं। इस गठबंधन का एक बड़ा संदेश BRICS को भी था – खासकर रूस, चीन और भारत जैसे देशों को जो वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था के हिमायती रहे हैं।
ट्रंप ने फरवरी में ही BRICS को “मृत” घोषित कर दिया था। उन्होंने कहा था, “BRICS is dead. I told them if they want to play games with the dollar, they’re going to be hit with a 100% tariff.” यानी अगर BRICS देश अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कोई साझा मुद्रा लाते हैं या उसे कमजोर करने की कोशिश करते हैं, तो अमेरिका सभी उत्पादों पर 100% शुल्क लगा देगा।
BRICS के भीतर पहले से ही आंतरिक असहमतियां रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की स्थिति को लेकर चीन और भारत के रुख अलग रहे हैं। वहीं, चीन और भारत के बीच सीमा विवाद भी किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में ट्रंप की चेतावनी BRICS के भीतर और अस्थिरता ला सकती है।
भारत इस पूरी स्थिति में एक जटिल परिस्थिति में फंसा हुआ है। एक ओर वह BRICS का संस्थापक सदस्य है और वैश्विक दक्षिण (Global South) के नेताओं में गिना जाता है, वहीं दूसरी ओर वह अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी भी बढ़ा रहा है। हाल ही में ट्रंप ने कहा कि भारत ने अमेरिका को एक व्यापार प्रस्ताव दिया है, जिसमें अमेरिकी उत्पादों पर “शून्य टैरिफ” का प्रस्ताव है। यह बयान ऐसे समय आया है जब ट्रंप ने 9 अप्रैल को प्रमुख व्यापार साझेदारों के लिए 90 दिन की ‘टैरिफ विराम’ नीति घोषित की है।
भारत ने मई में यूके के साथ भी एक व्यापार समझौता किया है। इन समझौतों से साफ है कि भारत अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को नए आयाम देना चाहता है। लेकिन क्या इससे BRICS की प्रतिबद्धता कमजोर होती है? यह भारत के लिए एक संतुलन साधने की परीक्षा है।
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों ने हाल के वर्षों में अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव किया है। वे अब केवल अमेरिका से “तेल के बदले सुरक्षा” जैसे पुराने समझौते पर निर्भर नहीं रहना चाहते, बल्कि टेक्नोलॉजी, रक्षा, और एआई जैसे क्षेत्रों में गहरे निवेश की तलाश कर रहे हैं। ट्रंप ने इसे अवसर में बदला और खाड़ी देशों को वैश्विक मंच पर अमेरिका का रणनीतिक साझेदार बनाने का प्रयास किया।
हालांकि सऊदी अरब ने अभी तक अमेरिकी सुरक्षा गारंटी वाली संधि को अंतिम रूप नहीं दिया है, लेकिन ट्रंप ने उन्हें हथियारों की डील और अरबों डॉलर की निवेश योजनाएं सौंपकर उनका समर्थन सुनिश्चित किया है।
ट्रंप की इस यात्रा का भारत पर दोहरा असर हो सकता है। एक ओर यह भारत को अमेरिका के और करीब ला सकता है, जिससे वह वैश्विक व्यापार और रक्षा समझौतों में लाभ पा सके। दूसरी ओर यह BRICS में भारत की स्थिति को कमजोर कर सकता है, जिससे रूस और चीन जैसे देश भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर सकते हैं।
भारत को यह स्पष्ट करना होगा कि उसकी बहुपक्षीय प्रतिबद्धता आर्थिक राष्ट्रवाद और रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित है, न कि किसी एक ध्रुवीय दुनिया के प्रति समर्पण पर।
डोनाल्ड ट्रंप की खाड़ी यात्रा केवल व्यापारिक सौदों की झड़ी नहीं है, बल्कि यह एक नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत है, जहां अमेरिका अपनी खोई हुई प्रभुत्वता को फिर से स्थापित करना चाहता है। BRICS के लिए यह एक चेतावनी है, जबकि भारत के लिए यह एक रणनीतिक चुनौती भी है और अवसर भी। अब यह भारत की कूटनीतिक चतुराई पर निर्भर करता है कि वह कैसे इस नए शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति को मज़बूती से बनाए रखता है।
(लेखक, समाचीन विषयों के गहन अध्येता, युवा चिंतक व राष्ट्रीय-आंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक हैं, रणनीति, रक्षा और तकनीकी नीतियों पर विशेष पकड़ रखते हैं।)