संपादक अमित पांडे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी करने के फैसले ने भारतीय आईटी उद्योग और लाखों पेशेवरों को गहरी अनिश्चितता में डाल दिया है। शुक्रवार को हस्ताक्षरित राष्ट्रपति आदेश के तहत अब एच-1बी वीज़ा के लिए अमेरिकी कंपनियों को प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) का शुल्क चुकाना होगा। यह फैसला 21 सितंबर से लागू होने जा रहा है, जिससे भारतीय आईटी पेशेवरों में अफरा-तफरी मच गई है।
भारत में इस कदम की कड़ी आलोचना हुई है और विपक्षी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा—“मैं दोहराता हूं, भारत के पास एक कमजोर प्रधानमंत्री है।” कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे मोदी को ट्रंप से मिला “बर्थडे रिटर्न गिफ्ट” करार दिया और कहा कि इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय आईटी पेशेवरों को होगा क्योंकि 70 प्रतिशत एच-1बी वीज़ा धारक भारतीय हैं।
खड़गे ने आरोप लगाया कि पहले ही अमेरिका ने 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर भारत को दस क्षेत्रों में लगभग 2.17 लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है, चाबहार बंदरगाह की छूट वापस ले ली गई है और अब यूरोपीय संघ भी भारतीय सामान पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की मांग कर रहा है। उन्होंने कहा कि “भालू जैसी झप्पियां, नारेबाजी और विदेशी धरती पर ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगवाना विदेश नीति नहीं है। असली विदेश नीति राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने और संतुलित मित्रता निभाने की कला है।”
कांग्रेस की आधिकारिक हैंडल ने भी मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला और कहा कि यह फैसला उनकी विदेश नीति की सबसे बड़ी विफलता साबित हुआ है। कांग्रेस का आरोप है कि पहले जहां वीज़ा शुल्क लगभग 6 लाख रुपये था, अब यह 88 लाख रुपये वार्षिक हो गया है। इसका सीधा असर भारतीयों के नौकरी के अवसरों, रेमिटेंस पर और आईटी उद्योग में पहले से हो रही छंटनी पर पड़ेगा।
कांग्रेस उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि यह फैसला भारत के सबसे होनहार दिमागों के भविष्य पर चोट है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना देते हुए कहा कि जब अमेरिका में एक भारतीय महिला राजनयिक का अपमान हुआ था, तब सिंह ने कड़ा रुख अपनाया था, लेकिन मोदी रणनीतिक चुप्पी और दिखावटी भव्यता के शौक में देशहित को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि राहुल गांधी ने 2017 में ही आगाह कर दिया था कि मोदी-ट्रंप वार्ता में वीज़ा मुद्दा अनदेखा किया जा रहा है। आज उनकी बात सच साबित हुई और भारत फिर एक कमजोर प्रधानमंत्री के साथ फंसा हुआ है।
दूसरी ओर, ट्रंप ने अपने आदेश में कहा कि एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम का दुरुपयोग करके अमेरिकी कामगारों की जगह विदेशी कम वेतन वाले कामगारों को रखा गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। वहीं भारतीय आईटी उद्योग संस्था नैसकॉम ने कहा है कि इस फैसले से भारतीय कंपनियों के प्रोजेक्ट्स बाधित होंगे और बिज़नेस कंटीन्यूटी पर असर पड़ेगा।
इस झटके का असर उन भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों पर भी दिखा है जो अमेरिका में वीज़ा पर काम कर रहे हैं। कई कंपनियों ने अपने एच-1बी कर्मचारियों और उनके आश्रितों को तुरंत लौटने की सलाह दी है। सोशल मीडिया पर भारतीय टेकियों के विमान से उतरने की खबरें भी सामने आई हैं। कॉमेडियन वीर दास ने लिखा, “जो भी एच-1बी धारकों की स्थिति से सहानुभूति नहीं रखेगा, वह दिल का पत्थर होगा। बच्चों की पढ़ाई, लोन, घर का खर्च, सब कुछ एक झटके में छिन सकता है।”
यह संकट उस समय आया है जब 283 अरब डॉलर का भारतीय आईटी उद्योग पहले से ही वैश्विक अनिश्चितताओं, टैरिफ-ट्रेड वार्स, भू-राजनीतिक तनाव और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बदलते परिदृश्य से जूझ रहा है। इस बीच अमेरिकी सीनेटर बर्नी मोरेनो ने ‘हायर एक्ट’ पेश किया है, जिसमें अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी कर्मचारियों को दी जाने वाली सेवाओं पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने का प्रावधान है।
कुल मिलाकर, ट्रंप के वीज़ा शुल्क झटके ने भारतीय आईटी उद्योग और लाखों परिवारों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। वहीं, कांग्रेस ने इसे मोदी की विदेश नीति की नाकामी बताते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री को कमजोर करार दिया है। भारत के लिए यह केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक चुनौती भी बन गई है।