लेखक: अमित पांडेय
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्कूल विलय योजना में संशोधन की खबर ने काफी सुर्खियां बटोरीं, जिसमें 50 से अधिक छात्रों वाले स्कूलों को बंद न करने और एक किलोमीटर के दायरे में ही स्कूलों के संचालन की बात कही गई। लेकिन इस शोरगुल के बीच एक और गंभीर मुद्दा पूरी तरह नजरअंदाज रह गया — शाहजहांपुर ज़िले में 855 स्कूल भवनों को ‘असुरक्षित’ बताकर ध्वस्त करने का आदेश, जबकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इन स्कूलों के छात्र अब कहाँ पढ़ेंगे, कितने समय में नए भवन तैयार होंगे, और तब तक उनकी शिक्षा का क्या होगा।
जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने इन स्कूल भवनों के ध्वस्तीकरण को अनिवार्य बताया, परंतु यह नहीं बताया गया कि नए भवनों का निर्माण कब तक पूरा होगा या तब तक बच्चों की पढ़ाई कैसे चलेगी। स्थानीय खंड शिक्षा अधिकारियों से सिर्फ इतना कहा गया कि वे यह प्रमाणित करें कि भवन अब उपयोग में नहीं हैं — पर इसका मतलब यह नहीं कि छात्रों की पढ़ाई के लिए कोई वैकल्पिक योजना भी तैयार है।
इस बीच, राज्य की स्कूल विलय नीति ने पहले से ही हजारों ग्रामीण स्कूलों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 26,000 से अधिक प्राथमिक स्कूल बंद किए जा चुके हैं और 5,000 स्कूलों का विलय किया गया है। इसके अतिरिक्त, लगभग 27,000 ग्रामीण स्कूलों को भविष्य में बंद करने की आशंका जताई गई है, जिससे पहले से वंचित तबकों के बच्चों की शिक्षा खतरे में पड़ रही है।
आलोचकों का कहना है कि स्कूल विलय सिर्फ नामांकन की संख्या पर आधारित है, जबकि असली समस्याएं—जैसे कि अधूरी बुनियादी सुविधाएं, शिक्षकों की अनुपस्थिति और विद्यालयों में मूलभूत ढांचे की कमी—को नजरअंदाज किया जा रहा है। बिजली, शौचालय, स्वच्छ पानी और मिड डे मील जैसी सुविधाओं के अभाव में छात्र स्कूल नहीं आ पाते, और फिर कहा जाता है कि स्कूल खाली हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिन 855 स्कूल भवनों को तोड़ा जा रहा है, उनके स्थान पर नए भवन कब तक बनेंगे, इसका कोई बजट या टाइमलाइन सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया है। अधिकारी दावा करते हैं कि छोड़े गए भवनों में ‘बाल वाटिकाएं’ बनाई जाएंगी, लेकिन जिन इमारतों को ध्वस्त कर दिया जाएगा, उनका क्या? शाहजहांपुर के कई माता-पिता चिंतित हैं कि उनके बच्चों को दूरदराज स्कूलों में भेजना होगा—जिसका अर्थ है बढ़ा हुआ जोखिम, खासकर लड़कियों के लिए, और सार्वजनिक परिवहन की गैरमौजूदगी में यह और भी कठिन हो जाएगा।
AAP सांसद संजय सिंह और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इस मुद्दे को संसद में उठाया है। उनका कहना है कि यह फैसला ‘शिक्षा के अधिकार’ कानून का उल्लंघन करता है और इससे राज्य सरकार की प्राथमिकताओं पर भी सवाल उठते हैं—जहाँ शराब की दुकानें खोलना ज्यादा ज़रूरी है, जबकि ग्रामीण शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्कूल विलय नीति को कानूनी तौर पर सही ठहराया, परंतु कोर्ट ने यह नहीं देखा कि दूरस्थ क्षेत्रों में बच्चों को स्कूल जाने के लिए 2-2.5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ सकता है—जो कई बार खतरनाक रास्तों से होकर गुजरता है।
UDISE+ के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 1.32 लाख सरकारी प्राथमिक स्कूल हैं, परंतु हजारों स्कूलों में नामांकन 50 से भी कम है, और कई में तो शून्य। 1.11 लाख स्कूल ऐसे हैं जहाँ केवल एक ही शिक्षक है। प्रयागराज ज़िले में ही 600 से अधिक स्कूल इमारतों को असुरक्षित घोषित किया गया है। दूसरी ओर, राज्य का 2025-26 बजट ₹8.08 लाख करोड़ है, लेकिन शिक्षा पर सिर्फ 13% यानी लगभग 0.36% GDP खर्च किया जा रहा है—जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के 6% के लक्ष्य से बहुत कम है।
इस स्थिति में, एक साथ ध्वस्तीकरण, विलय और तथाकथित ‘सुधार’ चलाए जा रहे हैं, परंतु बिना किसी पारदर्शी योजना या वैकल्पिक व्यवस्था के। अगर खाली स्कूल भवनों को बाल केंद्रों में बदला भी जाए, तो उन बच्चों का क्या जिनके स्कूल टूट गए और नए भवन बनने में वर्षों लग सकते हैं?
ज़मीनी हकीकत यह है कि बच्चों की उपस्थिति लगातार घट रही है। कई शिक्षक बताते हैं कि जिन स्कूलों का विलय किया गया, वहाँ की कई छात्राएं अब स्कूल आना छोड़ चुकी हैं। इसका मतलब यह है कि केवल संस्थागत विलय से शिक्षा समावेशी नहीं हो सकती—जब तक कि परिवहन, सुरक्षा और पर्याप्त बुनियादी ढांचे की गारंटी न दी जाए।
अगर “बढ़ेगा भारत” और “शिक्षित भारत” जैसे नारे सिर्फ राजनीतिक वक्तव्य बनकर रह जाएं, और बच्चों की शिक्षा का कोई ठोस रोडमैप न हो, तो यह सिर्फ व्यवस्था का मज़ाक नहीं होगा, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के भविष्य को अनदेखा करना होगा।
विद्यालयों को सिर्फ ज़मीन के टुकड़े मानकर न तोड़ा या छोड़ा नहीं जा सकता—जब तक कि उनके स्थान पर ठोस, सुरक्षित और सुलभ विकल्प तैयार न हों। सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द एक पारदर्शी योजना, बजट और टाइमलाइन पेश करे—वरना यह शिक्षा सुधार नहीं, बल्कि शिक्षा का पतन सिद्ध होगा।