Bihar crafts training centre: बिहार की समृद्ध कलात्मक परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन करने वाला उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान (उमसास) आज राज्य की पारंपरिक शिल्पकला और हस्तशिल्प के संरक्षण और संवर्धन का प्रमुख संरक्षक बन चुका है। यह संस्थान बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को समकालीन समय से जोड़ते हुए अतीत और भविष्य के बीच सेतु का कार्य कर रहा है।
संस्थान का उद्देश्य सिर्फ कला को संरक्षित करना नहीं, बल्कि कारीगरों और शिल्पकारों के लिए एक सतत और सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है। इसमें कौशल विकास, नवाचार, बाजार तक पहुंच और सांस्कृतिक संरक्षण की रणनीति शामिल हैं। अपनी विभिन्न पहलों के माध्यम से उमसास ने कारीगरों और शिल्पियों के लिए एक सतत और सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया है, जिससे वे अपनी पारंपरिक कला को जीवित रखते हुए आधुनिक बाजार की मांगों के अनुरूप ढ़ल सकें।
हर वर्ष 400 प्रशिक्षार्थियों को मिलता है कौशल प्रशिक्षण
उमसास की ओर से संचालित व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अंतर्गत हर साल दो सत्रों में 18 शिल्पों में छह महीने की कौशल प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इससे लगभग 400 प्रशिक्षार्थी लाभान्वित होते हैं। इन प्रशिक्षणों के माध्यम से न केवल पारंपरिक कला का संरक्षण होता है, बल्कि यह आधुनिक बाजार की मांगों के अनुरूप शिल्पकारों को तैयार करने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है।
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना में उमसास की भागीदारी
संस्थान प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के सफल क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभा रहा है। योजना के तहत संस्थान ने कुम्हारी कला, मूर्तिकला और सिलाई में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। योजना की सफलता का प्रमाण यह है कि बिहार से अब तक 1,24,000 आवेदनों को स्टेज 2 से स्टेज 3 तक की सिफारिश प्राप्त हो चुकी है।