हरेन्द्र प्रताप
झुंझुनूं ने भारत के उद्योग जगत को अनेक प्रसिद्ध औद्योगिक घराने दिये हैं। अपने राज्य राजस्थान को सैकड़ों उद्योगपति और हजारों उद्यमी दिये हैं। लेकिन स्वयं जिला झुंझुनूं देश की आजादी के 78 वर्षों के बाद भी औद्योगिक विकास से वंचित है और वास्तविक विकास के लिए किसी राजनीतिक या औद्योगिक चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहा है !
संयोगवश 31 अक्टूबर, 2025 को भारत सरकार की सेवा से मुक्त होने के बाद मुझे नवंबर के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में देश के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों में अलग-अलग कारणों से भ्रमण करने का अवसर मिला। 5 नवंबर को उत्तर प्रदेश के नोएडा में महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, 6 नवंबर को मध्य प्रदेश के रीवा में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय और 11 नवंबर को राजस्थान के जगदीश प्रसाद झाबड़मल टिबड़ेवाला विश्वविद्यालय पहुंचने और वहां भ्रमण करने का अवसर मुझे मिला। नोएडा, रीवा और झुंझुनूं देश में तीन तरह के शहर और तीनों के ये तीन विश्वविद्यालय तीन श्रेणियों के विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। नोएडा आधुनिक शहर बन रहा है। रीवा विकासशील बन रहा है। झुंझुनूं अविकसित अवस्था से निकलने के लिए छटपटा रहा है। तीनों को देश के सन् 2047 के केंद्रीय लक्ष्य यानि विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए उद्योग, मेट्रो और उत्तम विश्वविद्यालय चाहिए।
नोएडा में उद्योग, मेट्रो और विश्वविद्यालय हैं। नोएडा में इन तीनों का लगातार विकास हो रहा है। जाहिर है कि उत्तर प्रदेश तेजी से बदल रहा है। रीवा में विकास के लिए उद्योग और मेट्रो दोनों चाहिए तथा जल्दी चाहिए। रीवा में विश्वविद्यालय अच्छी अवस्था में हैं। हां, वहां विश्वविद्यालयों को देश के विकास से और विशेषकर विंध्य क्षेत्र के विकास से जोड़ने की आवश्यकता है। मध्य प्रदेश तभी विकास को लेकर सीमित समय में अपेक्षित परिणाम दे सकता है।
झुंझुनूं में उद्योग, मेट्रो और विश्वविद्यालय तीनों चाहिए। औद्योगिक रूप से राजस्थान के इस पिछड़े इलाके में उद्योग तथा मेट्रो प्राथमिकता के तौर पर तुरंत चाहिए। दोनों अपने वजूद के निर्माण के लिए झुंझुनूं में राजनीतिक इच्छाशक्ति के जन्म लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विश्वविद्यालय का वहां अस्तित्व है। लेकिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) की वक्र दृष्टि के कारण वहां के जीवित प्राइवेट विश्वविद्यालयों का अस्तित्व संकट में है। यूजीसी उन्हें सुधारने की जगह दंडित करने की पारंपरिक नीति पर चल रही है जिसके दूरगामी परिणाम रोजगार – विरोधी, उच्च शिक्षा विरोधी और विज़न 2047 विरोधी व्यवस्था को जन्म दे रहे हैं।
देश के विकास में विश्वविद्यालयों की भूमिका पर सरकारी और गैर-सरकारी विश्वविद्यालयों के साथ – साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। नोएडा, रीवा और झुंझुनूं के विश्वविद्यालयों के विकास के लिए एक मानक रखते हुए उनके अनुपालन में तीन पैमाने अपनाने की आवश्यकता है तथा विश्वविद्यालयों को पारंपरिक रूप से उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने के साथ – साथ उन्हें नाउलेज हब तथा नाउलेज उद्यमों के क्लस्टर एवं सरकारी योजनाओं को लक्षित समूह तक पहुंचाने में प्रभावी जिला केंद्र के रूप में विकसित करने में सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं – कार्यक्रमों की आवधिक स्टडी में छोटे – बड़े सभी विश्वविद्यालयों को वरीयता मिलनी चाहिए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ ही राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों को भी सशक्त बनाने की जरूरत है।
देश के जिस क्षेत्र में उद्योग बिल्कुल नहीं है, वहां एम एस एम ई से विकास को हरी झंडी दिखाए जाने की आवश्यकता है। अपेक्षाकृत रुप से पिछड़े इलाके में भी मेट्रो को अस्तित्व में लाये जाने की आवश्यकता है। विकास की नीतियों का निर्माण कर रहे विशेषज्ञ सिर्फ यह कल्पना करें कि राजस्थान में झुंझुनूं शहर से चुरु शहर तक और मध्य प्रदेश के रीवा शहर से उतर प्रदेश के प्रयागराज तक मेट्रो ट्रेन चल पड़े तो स्थानीय स्तर पर उद्यम तथा रोजगार के विकास की गाड़ी विकसित भारत की पटरी पर कितनी तेज़ी से दौड़ने लगेगी ! साथ ही देश के इस दो महत्वपूर्ण मार्ग के दोनों ओर यदि एम एस एम ई कोरिडोर विकसित कर दिया जाए तो रोज़गार और युवाओं को अपने घर से दूर भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी ! इस कल्पना को देश भर में विशेष कर कथित तौर पर पिछड़े क्षेत्रों में शीघ्र साकार करने की आवश्यकता है।
दरअसल भारत को सन् 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए विकसित राज्य, अल्प विकसित राज्य, विकासशील राज्य तथा अविकसित राज्य सभी को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है। अविकसित राज्यों के विभिन्न मामलों में विशेष तौर पर नियम – कानून को विकास के लिए आत्मघाती बनाने की जगह उदारवादी तथा सुधारवादी बनाने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों की भूमिका इस दृष्टि से नोएडा, रीवा तथा झुंझुनूं में विकास की अंतर्कथा को रचने में आज के समय में बढ़ गई है। इन तीनों शहरों की तीन श्रेणियों के अनुरूप देश के सभी राज्यों में विकास के लिए प्राथमिकता और उनमें विश्वविद्यालयों की भागीदारी को सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।
संयोगवश अपने रिटायरमेंट से ठीक पहले मुझे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, नॉर्थ ईस्टर्न हिल्स यूनिवर्सिटी तथा डेल्ही यूनिवर्सिटी ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च में भी कुलपतियों, प्रोफेसरों तथा विद्यार्थियों से चर्चा करने का सुखद अवसर मिला। ये सब देश के विकास में बढ़ – चढ़ कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हैं। इन्हें तलाश है उचित अवसर और सकारात्मक आमंत्रण की।
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