भारतीय राजनीति में हाल ही में एक बार फिर तीव्र राजनीतिक बहस ने जोर पकड़ा है, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बीच वोटर लिस्ट की शुद्धता को लेकर तीखी बयानबाज़ी हुई। यह विवाद केवल दो नेताओं के बीच का नहीं, बल्कि पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और लोकतंत्र की मजबूती से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा बन गया है।
राहुल गांधी ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया कि वे मिलकर देशभर में वोट चोरी का एक नया मॉडल लागू कर रहे हैं। उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए दावा किया कि वहां 1 लाख से अधिक वोट फर्जी हैं। उनके अनुसार, इनमें डुप्लिकेट वोटर, गलत पते वाले वोटर, एक ही पते पर दर्जनों नाम, गलत फोटो वाले वोटर और फॉर्म 6 के दुरुपयोग से जुड़े नए वोटर शामिल हैं। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि अब न्यायपालिका को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र खतरे में है।
राहुल गांधी के इन आरोपों पर विपक्षी दलों ने उनका समर्थन किया और चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाए। कांग्रेस, एनसीपी और अन्य दलों ने मांग की कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और वोटर लिस्ट को शुद्ध करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। वहीं, बीजेपी ने राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें राजनीतिक स्टंट करार दिया।
इस पूरे घटनाक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की प्रतिक्रिया विशेष रूप से ध्यान देने योग्य रही। सरमा, जो कभी कांग्रेस के सदस्य थे और राहुल गांधी से उनका पुराना विवाद रहा है, ने कहा कि राहुल गांधी ने स्वयं यह प्रमाण पत्र दे दिया है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि असम की वोटर लिस्ट में मृत व्यक्तियों और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के नाम शामिल हैं, जो चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता को प्रभावित करते हैं। सरमा ने यह भी कहा कि यही नाम अन्य राज्यों जैसे बरपेटा, गुवाहाटी, केरल और दिल्ली में भी पाए जाते हैं, जो एक गंभीर समस्या है।
मुख्यमंत्री सरमा का तर्क है कि वोटर लिस्ट को आधार नंबर से जोड़कर शुद्ध किया जाना चाहिए ताकि फर्जी और डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाया जा सके। उन्होंने बिहार में चल रहे SIR का उदाहरण देते हुए कहा कि यह प्रक्रिया पूरे देश में लागू होनी चाहिए। उनका मानना है कि राहुल गांधी के आरोप वास्तव में इस बात का प्रमाण हैं कि SIR जैसी पहल अब राष्ट्रीय स्तर पर जरूरी हो गई है।
इस विवाद ने देशभर में एक व्यापक राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को जन्म दिया है। वोटर लिस्ट की शुद्धता और पारदर्शिता अब केवल चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह लोकतंत्र की रक्षा से जुड़ा एक मूलभूत प्रश्न बन गया है। यदि विपक्षी दलों की मांगों को बल मिलता है और न्यायपालिका इस दिशा में हस्तक्षेप करती है, तो आने वाले चुनावों में बड़े सुधार संभव हो सकते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर जनता और राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ रही है। SIR जैसी पहलें अब केवल प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य उपाय बनती जा रही हैं। आने वाले समय में यह मुद्दा और भी गहराएगा, और यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत रही तो भारत की चुनावी प्रणाली में ऐतिहासिक सुधार देखने को मिल सकते हैं।