Space Return Effects on Body: अंतरिक्ष यात्रा जितनी रोमांचक होती है, उससे भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है पृथ्वी पर लौटना। जब कोई अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (Microgravity) में रहता है, तो उसके शरीर की संरचना और कार्यप्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि जैसे ही ये यात्री धरती पर कदम रखते हैं, उन्हें सीधा घर नहीं भेजा जाता—बल्कि विशेषज्ञों की सख्त निगरानी में रखा जाता है।
इस विशेष निगरानी का उद्देश्य होता है उनके शरीर, दिमाग और स्वास्थ्य को दोबारा धरती के अनुकूल बनाना। आइए जानें कि आखिर अंतरिक्ष से लौटने पर वैज्ञानिकों को किन-किन पहलुओं पर ध्यान देना पड़ता है।
हड्डियां और मांसपेशियां क्यों हो जाती हैं कमजोर?
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होने से इंसानी शरीर को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। वहां मांसपेशियां और हड्डियां बहुत कम एक्टिव रहती हैं। यही वजह है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले यात्री की हड्डियां 1-2% घनत्व (Density) तक खो सकती हैं।
पृथ्वी पर लौटते ही साधारण क्रियाएं जैसे चलना, बैठना या खड़ा रहना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस दौरान यात्रियों को फिजियोथेरेपी, एक्सरसाइज़ और न्यूट्रिशनल सपोर्ट की जरूरत होती है, ताकि उनकी हड्डियां और मांसपेशियां फिर से ताकतवर बन सकें।
हृदय और रक्त संचार प्रणाली पर कैसे पड़ता है असर?
अंतरिक्ष में दिल को शरीर में रक्त पंप करने में कम मेहनत करनी पड़ती है। इससे उसकी मांसपेशियां थोड़ी सुस्त हो जाती हैं। जैसे ही यात्री धरती पर लौटते हैं, दिल को अचानक सामान्य गुरुत्वाकर्षण में पूरी ताकत से काम करना पड़ता है।
परिणामस्वरूप उन्हें चक्कर आना, ब्लड प्रेशर गिरना या बेहोशी जैसी समस्या हो सकती है। विशेषज्ञ उनके हृदय की कार्यक्षमता की गहराई से जांच करते हैं और जरूरत पड़ने पर कार्डियक ट्रेनिंग या दवाएं देते हैं।
मानसिक और इम्यून सिस्टम पर कैसे होता है असर?
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एकांत, सीमित बातचीत, कृत्रिम वातावरण और सतत तनाव से मानसिक स्थिति पर असर पड़ता है। इसी कारण विशेषज्ञ पृथ्वी पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों का साइकोलॉजिकल असेसमेंट करते हैं।
इसके साथ ही, माइक्रोग्रैविटी की स्थिति में प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) की कार्यक्षमता भी कम हो सकती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। डॉक्टर्स यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी तरह की इन्फेक्शन या बीमारी से बचाव हो सके।
अंतरिक्ष एजेंसियों की जिम्मेदारी
NASA, ISRO, ESA जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों का मेडिकल प्रोटोकॉल अंतरिक्ष यात्रा के बाद बेहद सख्त होता है। यात्रियों को लौटने के बाद आमतौर पर 7 से 14 दिन तक क्वारंटीन-सरीखी निगरानी में रखा जाता है। इस दौरान उनका मेडिकल स्कैन, ब्लड टेस्ट, हड्डी घनत्व परीक्षण, कार्डियोलॉजी रिपोर्ट और मानसिक स्वास्थ्य आकलन किया जाता है।
अंतरिक्ष यात्रा के रोमांच के पीछे छिपी है एक बेहद जटिल शारीरिक और मानसिक प्रक्रिया। गुरुत्वाकर्षण से दूर जाकर जब इंसान लौटता है, तो उसे फिर से इस धरती के नियमों में ढलने के लिए वैज्ञानिक मदद की जरूरत होती है। यही कारण है कि अंतरिक्ष से लौटते ही ये ‘हीरो’ सीधे घर नहीं, बल्कि डॉक्टरों की देखरेख में जाते हैं।