पटना, 17 मई (कड़वा सत्य) बिहार में सीतामढ़ी संसदीय सीट पर वर्ष 1957 में हुये चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जे.बी.कृपालानी के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था।
सीतामढ़ी संसदीय सीट वर्ष 1957 में हुये आम चुनाव में अस्तित्व में आयी थी। इस चुनाव में जे.बी.कृपालानी सांसद बने थे। सिंध पाकिस्तान के रहने वाले जीवट भगवानदास कृपलानी (जे.बी.कृपालानी) वर्ष 1912 में बिहार के मुजफ्फरपुर के भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज (अब लंगट सिंह कॉलेज) में इतिहास के लेक्चरर नियुक्त हुए थे। वर्ष 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब चम्पारण जाने के लिए मुजफ्फरपुर पहुंचे थे, तब आचार्य कृपलानी ने उनकी आगवानी की थी। इसकी वजह से अंग्रेजों ने उन्हें लेक्चरर पद से हटा दिया। इसके बाद कृपालानी को महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बुला लिया। वर्ष 1957 में कृ़पालानी चुनाव लड़ने के लिए बिहार के सीतामढ़ी पहुंचे। उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा। आचार्य कृपलानी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे। प्रधानमंत्री नेहरू उनकी बहुत इज्जत करते थे। जब पंडित नेहरू को मालूम हुआ कि कृपालानी चुनाव लड़ने के लिए सीतामढ़ी गये हैं तो उन्होंने वहां से कांग्रेस प्रत्याशी को खड़ा नही किया।प्रधानमंत्री नेहरू चाहते थे कि कृपलानी जैसे प्रखर नेता संसद में पहुंचे।
सीतामढ़ी लोकसभा सीट 1957 पहले मुजफ्फरपुर पूर्वी के रूप में जानी जाती थी। सीतामढ़ी लोकसभा सीट का पहला सांसद बनने का गौरव स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता जे.बी.कृपलानी को प्राप्त है। उन्होंने 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी। श्री कृपालानी ने निर्दलीय प्रत्याशी बुझावन शाह को शिकस्त दी।छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी (सीएसपीजेपी) उम्मीदवार नाग नारायण सिन्हा तीसरे नंबर पर रहे। इससे पूर्व जे.बी.कृपालानी ने वर्ष 1955 में भागलपुर-पूर्णिया उपचुनाव में जीत हासिल की। उन्हें सम्मान से आचार्य कृपलानी कहा जाता था। वह वर्ष 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। उन्होंने वर्ष 1963, उत्तर प्रदेश के अमरोहा उपचुनाव और वर्ष 1967 में मध्य प्रदेश के गुना के उपचुनाव भी जीत हासिल की थी।
वर्ष 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार नागेंद्र प्रसाद यादव ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के युगल किशोर सिंह को पराजित किया। वर्ष 1967 में कांग्रेस उम्मीदवार नागेंद्र प्रसाद यादव ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टी.वीयके. सिंह को पराजित किया। वर्ष 1971 में कांग्रेस उम्मीदवार नागेंद्र प्रसाद यादव ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के ठाकुर युगल किशोर सिंह को पराजित कर जीत की हैट्रिक लगायी। वर्ष 1977 में भारतीय लोक दल के श्याम सुंदर दास ने कांग्रेस उम्मीदवार नागेंद्र प्रसाद यादव को पराजित कर उनका विजयी रथ रोक दिया। वर्ष 1980 में कांग्रेस (यू) प्रत्याशी बलि भगत ने इंदिरा कांग्रेस के शशि शेखर नारायण सिंह को मात दी। इससे पूर्व बलि भगत ने वर्ष 1952 में पटना-भागलपुर, वर्ष 1957, 1962, 1967, 1971 में शाहाबाद से जीत हासिल की। वर्ष 1984 में श्री भगत ने आरा संसदीय सीट से जीत हासिल की। श्री भगत, लोकसभा सदस्य, केन्द्रीय मंत्री,हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान के राज्यपाल भी रहे हैं।
वर्ष 1984 में कांग्रेस ने वापसी की।कांग्रेस के रणश्रेष्ठ खिरहर ने लोकदल के इंदल दल सिंह नवीन को हराया। वर्ष 1989 में जनता दल के हुक्मदेव नारायण यादव ने कांग्रेस के नागेंद्र यादव को पराजित किया। वर्ष 1991 में जनता दल प्रत्याशी नवल किशोर राय ने कांग्रेस के वृक्ष चौधरी को पराजित किया। वर्ष 1996 मे जनता दल के नवल किशोर राय ने कांग्रेस प्रत्याशी मो. अनवर उल हक को मात दी। वर्ष 1998 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सीता यादव ने जनता दल के नवल किशोर राय को शिकस्त दी।
वर्ष 1999 में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) प्रत्याशी नवल किशोर राय ने राजद के सूर्यदेव राय को मात दी।वर्ष 2004 में राजद के सीता यादव ने जदयू के नवल किशोर राय को पराजित किया। वर्ष 2009 मे जदयू के अर्जुन राय ने कांग्रेस के समीर कुमार महासेठ को पराजित किया। राजद के सीता यादव तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2014 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के कुमार शर्मा ने राजद प्रत्याशी सीता यादव को शिकस्त दी। जदयू के अर्जुन राय तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में हुई सीट शेयरिंग में रालोसपा को तीन सीटें दी गई थी। काराकाट से उपेन्द्र कुश्वाहा, जहानाबाद से अरूण कुमार और सीतामढ़ी से कुमार शर्मा ने जीत हासिल की थी। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के पूर्व कुमार शर्मा ने उपेन्द्र कुशवाहा पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुये रालोसपा छोड़ ‘आरएलएसपी कुमार शर्मा गुट बना ली थी।वर्ष 2019 में जदयू प्रत्याशी पूर्व मंत्री सुनील कुमार पिंटू ने राजद के अर्जन राय को मात दी।
माता जानकी की जन्मभूमि सीतामढ़ी की संसदीय सीट कई मायनों में अलग है। जिले के पुनौरा गांव में मां जानकी जन्मभूमि मंदिर है जिसे पुनौरा धाम के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर सीतामढ़ी स्वतंत्र जिला बना।अतीत में समाजवादियों का गढ़ रही इस सीट पर आजतक कभी भाजपा का प्रत्याशी नहीं जीता। भाजपा और जद यू के बीच जो सीटों का समझौता हुआ उसमें यह सीट जदयू के खाते में गई। हालांकि जदयू के टिकट पर ही 2019 में यहां से जीते सुनील कुमार पिंटू इस बार पार्टी के प्रत्याशी नहीं हैं। उनकी जगह पार्टी ने विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर पर दांव लगाया है। वहीं इंडिया गठबंध के घटक राजद ने इस बार भी 2019 में चुनाव लड़ने वाले अर्जुन राय को ही चुनावी मैदान में उतारा है।
देवेशचंद्र ठाकुर की जहां साफ-सुथरी छवि है। वहीं अर्जुन राय लोकसभा चुनाव 2009 में जदयू के टिकट पर सीतामढ़ी से सांसद रह चुके हैं। दोनों प्रत्याशियों की इलाके में छवि और पकड़ के अलावा यहां माता सीता का निर्माण सबसे बड़ा मुद्दा है। राजग के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि अयोध्या में मंदिर बनने का फायदा मिलेगा। दरअसल, स्थानीय लोगों के लिए जानकी धाम की तरह ही यह भावनात्मक मुद्दा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जदयू प्रत्याशी देवेश चंद्र ठाकुर के पक्ष मे चुनावी सभा को संबोधित किया है। उन्होने कहा है कि सीतामढी में ‘मां सीता’ का एक बड़ा और भव्य मंदिर बनाया जाएगा और इस स्थान को ायण सर्किट से भी जोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जदयू प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया है।उन्होंने सीतामढ़ी से अधिक से अधिक वोट से उम्मीदवार देवेश चंद्र ठाकुर ठाकुर को जिताने की अपील की है। वहीं राजद प्रत्याशी के पक्ष में पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, विकासशील इंसान प्रमुख मुकेश सहनी समेत इंडिया गठबंधन के कई राजनेताओं ने प्रचार किया है। तेजस्वी ने कहा है कि मंदिर के नाम पर वोट मोदी सरकार वोट मांग रही है।इस चुनाव में भाजपा को को कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है।
जदयू प्रत्याशी देवेश चंद्र ठाकुर ने कहा है यदि वह चुनाव जीत जाते हैं, तो वह पहला काम अयोध्या की तरह माता सीता के भव्य मंदिर के निर्माण कराएंगे। भव्य मंदिर के निर्माण के बाद अयोध्या की तरह ही देश क्या विदेश में भी लोग इसे जानेंगे और यहां करोड़ की संख्या में पर्यटक आएंगे। अब तक जो सीतामढ़ी में विकास का काम नहीं हुआ है वह सब काम करवाया जाएगा। उन्होने कहा है कि सरकारें बनाई जाती हैं, जिससे आदमी को सुरक्षा मिले, रोजगार मिले, शिक्षा मिले, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, समाज में समरसता और सद्भाव बना रहे,लेकिन सामने वाली पार्टी हमेशा हिंदू-मुसलमान, अगड़े-पिछड़े की बात करती है, विकास इनका एजेंडा ही नहीं है। मोदी और नीतीश के नेतृत्व में देश-राज्य में बेहतर काम हो रहा है। जीत की हैट्रिक लगा चुके राजग को अपने कैडर वोट के अलावा पीएम मोदी के मैजिक और देवेशचंद्र ठाकुर की साफ-सुथरी छवि का भरोसा है, तो वहीं इंडिया गठबंधन का दावा है कि इस बार सीतामढ़ी में अर्जुन राजग का गढ़ भेद पाने में सफल होंगे।
वर्तमान में सीतामढ़ी लोकसभा सीट राजग का मजबूत किला है। यहां से लगातार तीन बार राजग उम्मीदवार को जीत मिल चुकी है। अब चौथी बार विजय पताका फहराने की तैयारी है। राजग के घटक के रूप में जदयू ने सबसे पहले लोकसभा चुनाव 1999 सीतामढ़ी सीट से जीत दर्ज की थी। हालांकि 2004 में यहां राजग की हार हुई लेकिन उसके बाद से राजग ही जीतती आई है। अब देखना है कि राजद के अर्जुन राय इस किले को फतह कर पाते हैं या राजग का ही कब्जा जारी रहेगा।
सीतामढ़ी लोकसभा सीट मे सबसे ज्यादा वैश्य मतदाता हैं। वैश्य समाज के मतदाता भाजपा के के कोर वोटर माने जाते हैं इसका फायदा राजद गठबंधन के जदयू को मिल सकता है।राजद अपने एमवाई समीकरण (मुस्लिम + यादव) के साथ साथ अन्य जातियों को भी साधने में जुटी हुई है।सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की छह सीट सीतामढ़ी, बथनाहा, परिहार, सुरसंड,रून्नीसैदपुर और बाजपट्टी आती है। इसमें सीतामढ़ी,बथनाहा और परिहार मे भाजपा, सुरसंड और रून्नीसैदपुर मे जदयू जबकि बाजपट्टी में राजद का कब्जा है।वर्तमान में छह विधानसभा सीटों में से पांच पर राजग का कब्जा है।इस लिहाज से यहां राजग का पलड़ा भारी माना जा रहा है।सीतामढ़ी संसदीय सीट से जदयू राजद, बहुजन समाज पार्टी समेत 14 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लाख 19 लाख 47 हजार 996 हैं। इनमें 10 लाख 27 हजार 976 पुरूष, 09 लाख 19 हजार 945 महिला ,75 थर्ड जेंडर हैं, जो पांचवे चरण में 20 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेगी।
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