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एमयूडीए मामलाः कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सिद्दारमैया के खिलाफ जांच के राज्यपाल के फैसले को रखा बरकरार

News Desk by News Desk
September 24, 2024
in राजनीति
एमयूडीए मामलाः कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सिद्दारमैया के खिलाफ जांच के राज्यपाल के फैसले को रखा बरकरार
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बेंगलुरु, 24 सितंबर (कड़वा सत्य ) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) की 14 साइटों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच की मंजूरी देने के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायालय ने श्री सिद्दारमैया की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत के उनकी (श्री सिद्दारमैया की) पत्नी को एमयूडीए की 14 साइटों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच की मंजूरी देने के फैसले को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि इस मामले में राज्यपाल के फैसले में कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने ‘विचार-विमर्श’ के बाद अपने विवेक का इस्तेमाल करके आदेश पारित किया था। न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा शिकायत दर्ज कराना और राज्यपाल से मंजूरी मांगना उचित था और इस संदर्भ में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत मंजूरी अनिवार्य है।
इस बीच, श्री सिद्दारमैया ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने का फैसला किया है।
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने स्पष्ट किया कि धारा 17ए में कहा गया है कि किसी पुलिस अधिकारी को अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए किसी लोक सेवक के खिलाफ धारा 200 या 203 के तहत दर्ज निजी शिकायत के लिए अनुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस तरह की स्वीकृति लेना शिकायतकर्ता का कर्तव्य है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्यपाल आमतौर पर संविधान के अनुच्छेद 163 में उल्लिखित प्रावधानों के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं, लेकिन वे असाधारण परिस्थितियों में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा, “वर्तमान मामला ऐसे अपवाद का उदाहरण है।” न्यायाधीश ने कहा कि राज्यपाल द्वारा स्वतंत्र विवेक का प्रयोग करने में कुछ भी गलत नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि निर्णय के कारणों को फैसला लेने वाले प्राधिकारी की फाइल में दर्ज किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “राज्यपाल के आदेश में विवेक की कमी नहीं थी, बल्कि, यह विवेक के भरपूर उपयोग को दर्शाता है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि धारा 17ए के तहत मंजूरी से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य नहीं है। उन्होंने कहा, “यह प्राधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है।” यह निर्णय जांच को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है, राज्यपाल की मंजूरी की पुष्टि करता है और पूरी तरह से कानूनी जांच को सक्षम बनाता है।
श्री गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन के दौरान 2021 में किए गए भूमि आवंटन से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों की ‘तटस्थ, वस्तुनिष्ठ और गैर-पक्षपातपूर्ण जांच’ की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री सिद्दारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी।
यह मामला बेंगलुरु के टीजे अब्राहम और मैसूरु की स्नेहमयी कृष्णा की शिकायतों के आधार पर शुरू किया गया था। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि श्री सिद्दारमैया उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
श्री सिद्दारमैया की याचिका खारिज होने को लेकर राज्य में राजनीति शुरू हो गयी है। यह फैसला जहां श्री सिद्दारमैया की राजनीतिक विश्वसनीयता और कांग्रेस पार्टी में उनकी स्थिति को कमज़ोर कर सकता हैा। वहीं, विपक्षी दलों, विशेष रूप से भाजपा ने उपचुनावों के नज़दीक आने के मद्देनजर स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए उनकी नैतिकता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
संतोष,  
कड़वा सत्य

Tags: : सिद्दारमैयाagainstcaseGovernorHigh CourtinvestigationKarnatakaMUDASiddaramaiahupheldverdictउच्च न्यायालयएमयूडीएकर्नाटकखिलाफजांचफैसलेमामलारखा बरकरारराज्यपाल
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