वार्धा (महाराष्ट्र), 20 सितंबर (कड़वा सत्य) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि देश की परंपरागत हस्तशिल्प और हुनर को पुनर्जीवित करके हस्तशिल्पियों के जीवन को समृद्ध बनाना तथा उन्हें उद्यमी का दर्जा दिलाना उनकी सरकार का लक्ष्य है और इसी लिए सरकार ने विश्वकर्मा कार्यक्रम शुरू किया है।
श्री मोदी ने केंद्र सरकार की विश्वकर्मा योजना की पहली वर्ष गांठ पर यहां आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ओएनडीसी (डिजिटल वाणिज्य का खुला मंच) और सरकारी ई-बाजार (जेम) जैसे ई-वाणिज्य मंच हस्तशिल्पियों, दस्ताकारों और कारीगरों की मदद के लिए भी खुले हैं। उन्हें विश्वकर्मा योजना के माध्यम से वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता एवं प्रोत्साहन सुलभ कराए जा रहे हैं।
इस कार्यक्रम को माइक्रो, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) विभाग के मंत्री जीतन मांझी ने भी संबोधित किया।
प्रधामंत्री ने कहा कि अब तक साढ़े छह लाख से ज्यादा विश्वकर्मा बंधुओं को आधुनिक उपकरण भी उपलब्ध कराए गए हैं। इससे उनके उत्पादों की क्वालिटी बेहतर हुई है, उनकी उत्पादकता बढ़ी है। इतना ही नहीं, हर लाभार्थी को 15 हजार रुपए का ई-वाउचर दिया जा रहा है।विश्वकर्मा योजना के तहत अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बिना गारंटी के तीन लाख रुपए तक लोन भी मिल रहा है।
श्री मोदी ने कहा, “मुझे खुशी है कि एक साल के भीतर-भीतर विश्वकर्मा भाइयों-बहनों को 1400 करोड़ रुपए का लोन दिया गया है। यानी विश्वकर्मा योजना, हर पहलू का ध्यान रख रही है। तभी तो ये इतनी सफल है, तभी तो ये लोकप्रिय हो रही है।”
उन्होंने कहा, “ मैं चाहता हूं कि विश्वकर्मा समाज, इन पारंपरिक कार्यों में लगे लोग केवल कारीगर बनकर न रह जाएँ! बल्कि मैं चाहता हूं, वे कारीगर से ज्यादा वो उद्यमी बनें, व्यवसायी बनें, इसके लिए हमने विश्वकर्मा भाई-बहनों के काम को एमएसएमई का दर्जा दिया है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट और एकता मॉल जैसे प्रयासों के जरिए पारंपरिक उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है। हमारा लक्ष्य है कि ये लोग अपने बिज़नस को आगे बढ़ाएँ! ये लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों की सप्लाई चेन का हिस्सा बनें।”
श्री मोदी ने कहा कि आजादी के बाद की सरकारों ने इस हुनर को वो सम्मान नहीं दिया, जो दिया जाना चाहिए था। पिछली सरकारों ने विश्वकर्मा समाज की लगातार उपेक्षा की और “जैसे-जैसे हम शिल्प और कौशल का सम्मान करना भूलते गए, भारत प्रगति और आधुनिकता की दौड़ में भी पिछड़ता चला गया।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने इस परंपरागत कौशल को नयी ऊर्जा देने का संकल्प लिया और इसे पूरा करने के लिए ‘पीएम विश्वकर्मा’ जैसी योजना शुरू की गयी। उन्होंने कहा,“ विश्वकर्मा योजना की मूल भावना है- सम्मान, सामर्थ्य और समृद्धि! यानी, पारंपरिक हुनर का सम्मान! कारीगरों का सशक्तीकरण! और विश्वकर्मा बंधुओं के जीवन में समृद्धि, ये हमारा लक्ष्य है।”
श्री मोदी ने कहा,“ विश्वकर्मा योजना केवल सरकारी कार्यक्रम भर नहीं है। ये योजना भारत के हजारों वर्ष पुराने कौशल को विकसित भारत के लिए इस्तेमाल करने का एक रोडमैप है। इसी लिए वर्धा की पवित्र धरती पर हम पीएम विश्वकर्मा योजना की सफलता का उत्सव मना रहे हैं। आज ये दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि 1932 में आज ही के दिन महात्मा गांधी जी ने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान शुरू किया था। यह धरती विकसित भारत के हमारे संकल्पों को नयी ऊर्जा देगी।”
प्रधानमंत्री ने भारत के स्वर्णिम इतिहास और प्राचीन काल में देश की समृद्धि में ‘पारंपरिक कौशल’ की महती भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा,“ उस समय का हमारा शिल्प, हमारी इंजीनियरिंग, हमारा विज्ञान अद्भुत था! हम दुनिया के सबसे बड़े वस्त्र निर्माता थे। हमारा धातु-विज्ञान, हमारी मेटलर्जी भी विश्व में बेजोड़ थी। उस समय के बने मिट्टी के बर्तनों से लेकर भवनों की डिजाइन का कोई मुकाबला नहीं था।”
उन्होंने कहा कि गुलामी के समय में अंग्रेजों ने इस स्वदेशी हुनर को समाप्त करने के लिए भी अनेक साजिशें की। इसलिए ही वर्धा की इसी धरती से गांधी जी ने ग् ीण उद्योग को बढ़ावा दिया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्वकर्मा योजना को अभियान के रूप में चलाया जा रहा है। सात सौ से ज्यादा जिले, देश की ढाई लाख से ज्यादा ग् पंचायतें, देश के पांच हजार शहरी स्थानीय निकाय, ये सब मिलकर इस अभियान को गति दे रहे हैं। इस एक वर्ष में ही 18 अलग-अलग पेशों के 20 लाख से ज्यादा लोगों को इससे जोड़ा गया है। सिर्फ साल भर में ही आठ लाख से ज्यादा शिल्पकारों और कारीगरों को स्किल ट्रेनिंग, कौशल उन्नयन मिल चुकी है। अकेले महाराष्ट्र में ही 60 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग मिली है। इसमें, कारीगरों को आधुनिक मशीने और डिजिटल टूल जैसी नई टेक्नॉलजी भी सिखाई जा रही है।
उन्होंने कहा ,“हमारे पारंपरिक कौशल में सबसे ज्यादा भागीदारी अनुसूचित जाति, जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के समाज के लोगों की रही है। अगर पिछली सरकारों ने विश्वकर्मा बंधुओं की चिंता की होती, तो इस समाज की कितनी बड़ी सेवा होती।”
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कड़वा सत्य