मंजरी की विशेष रिपोर्ट
- तुम डूबो – डूबो – डूबो, बार-बार डूबो
हम तुम्हें बचाएंगे : हरेन्द्र प्रताप - सन् अस्सी के दशक की कविता से
चमत्कृत हुई प्रयागराज की धरती ! - अनवर अब्बास की मेजबानी में सजी
कविता – ग़ज़ल की अद्भुत महफ़िल !
प्रयागराज, 27 सितम्बर। सन् अस्सी के दशक में पटना में जन्मी हरेन्द्र प्रताप की कविता ” बाढ़ ” प्रयागराज में पहली बार सितंबर 2025 के अंतिम सप्ताह में हलचल पैदा करने में कामयाब रही। बाढ़ कविता में भ्रष्टाचार का भांडा बड़ी साफगोई से फोड़ा गया है ! कवि अनवर अब्बास ने श्रीकृष्ण पर कविता रच कर रसखान की याद ताज़ा कर दी। उन्होंने अपनी पुस्तक कवि हरेन्द्र प्रताप को भेंट की।
प्रयागराज की ऐतिहासिक धरती 25 सितंबर की शाम एक अनोखे साहित्यिक संगम की साक्षी बनी। प्रख्यात कवि अनवर अब्बास नक़वी के निवास पर एक अविस्मरणीय काव्य संध्या का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हिंदी और उर्दू की साझा सांस्कृतिक एवं भाषाई विरासत का जश्न मनाने के लिए अनेक साहित्यकार एकजुट हुए।
कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई हरेंद्र प्रताप सिंह, साहित्यकार एवं वरिष्ठ आई ई डी एस अधिकारी (अध्यक्ष, एआईएमटीओए एवं संयुक्त निदेशक, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार, दिल्ली) ने। अपने मुख्य उद्बोधन में उन्होंने कहा कि मनुष्यता की सच्ची संपत्ति शक्ति या भौतिक साधनों में नहीं, बल्कि विचार और मन की संगति में अंतर्निहित होती है। उन्होंने इस अवसर पर अपनी दो सदाबहार कविता ” बाढ़ ” और ” आज की पत्रकारिता ” सुना कर माहौल में जोश पैदा कर दिया।

कार्यक्रम को वैचारिक गहराई प्रदान की डॉ. प्रदीप चित्रांशी ने । उन्होंने हिंदी, उर्दू और अन्य भारतीय भाषाओं के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर प्रकाश डाला। गोष्ठी का संचालन एम.एस. खान (शाहिद अली शाहिद) ने अपनी ओजस्वी और मनमोहक शैली में किया।
मेजबान अनवर अब्बास नक़वी ने साहित्यिक सत्र की शुरुआत एक क्लासिकल हिंदी ग़ज़ल से की, जिसके बाद उन्होंने उर्दू ग़ज़ल प्रस्तुत की। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने खूब तालियाँ बटोरीं। इसी क्रम में प्रो. समीर मिश्रा ( डॉ. जी. गणेशन मिश्रा ), रंग पांडेय, शैलेन्द्र जय, जाफ़र अस्करी, सुश्री मिस्बाह इलाहाबादी और वक़ीफ़ अंसारी ने अपनी ग़ज़लों, शेरों, कविताओं और दोहों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का समापन प्रख्यात समाजसेवी एवं चिंतक सैयद सुलेमान अहमद के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने इस आयोजन को हिंदी और उर्दू की अविच्छिन्न एकता का सशक्त उदाहरण बताते हुए कहा कि यह संगम भाषाओं की जीवंतता और सामाजिक सामंजस्य का प्रतीक है।
वास्तव में यह शाम केवल कविताओं का पाठ नहीं थी, बल्कि इसने यह भी याद दिलायी कि भाषाएँ अलगाव में नहीं, बल्कि आपस में मिलकर एक साथ फूलती- फलती हैं — दिलों को जोड़ती हैं, विचारों को प्रकाशित करती हैं और सांस्कृतिक एकता को प्रोत्साहन देती हैं।
इससे एक दिन पहले भी कुंजपुर गेस्ट हाउस में भी कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें इनमें से अनेक कवियों के संग कवयित्री रजिया सुल्तान ने भी भाग लिया। दो दिन में प्रयागराज की धरा काव्य फुहार से सराबोर हो उठी।