हरेन्द्र प्रताप का विश्लेषण
बिहार से लेकर दिल्ली तक और मुंबई से लेकर कोलकाता तक नवंबर 2025 में संपन्न विधान सभा चुनाव परिणाम की गूंज अभी भी बंद कमरे से लेकर सार्वजनिक रूप से सुनाई पड़ रही है। दिल्ली में रविवार 23 नवंबर को भी डीटीसी की एक बस में कुछेक यात्री इस विषय को लेकर आपस में तीखी बहस करते दिखे। इस परिणाम से बिहार का शिक्षित वर्ग प्रसन्न है और देश का शिक्षित वर्ग हैरान है ! बिहार के विधान सभा के ताजा चुनाव का परिणाम अभी भी दिल्ली और पश्चिम बंगाल में बहुत लोगों को हज़म नहीं हो पा रहा है। रह – रह कर इसका विविधतापूर्ण विश्लेषण अभी भी किया जा रहा है। चुनाव विशेषज्ञ होने का दावा करने वाले अनेक लोगों को इस बार सांप सूंघ गया है। दूसरी ओर अनेक राष्ट्रवादी इसे शेष राज्यों में आगामी विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए मनोबल को नई ऊंचाई पर ले जाने वाला परिणाम बता रहे हैं। अब सब की नजर असम और पश्चिम बंगाल पर ठहर गई है।
बिहार में विभिन्न हिस्सों और देश के अन्य राज्यों में बसे बौद्धिक तबकों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( एन डी ए ) की दो सौ से अधिक सीटों पर धमाकेदार जीत को लेकर अनेक दिलचस्प कारण गिनाए हैं। इनमें से 21 प्रमुख कारण इस प्रकार बताए गए हैं :
- जंगलराज का खौफ
- भ्रष्टाचार का भूत
- मां का अपमान
- राष्ट्रवाद का उभार
- ऑपरेशन सिंदूर
- तुलनात्मक विकास
- लोकतंत्र बनाम परिवारवाद
- बिखरता विपक्ष
- नरेन्द्र मोदी की छवि
- नीतिश कुमार की राजनीति
- कर्पूरी ठाकुर का सम्मान
- द्रौपदी मुर्मू का अदृश्य प्रभाव
- महिलाओं – किसानों को आदर
- युवाओं को भरोसा
- जातीय समीकरण में दरार
- अल्पसंख्यकों में भ्रम
- कार्यकर्ताओं में जोश
- डबल इंजन की सरकार
- चुनावी प्रबंधन का करिश्मा
- चुनाव आयोग पर विवाद
- छठ पूजा को प्रमुखता !
इन तथ्यों पर यदि गौर करें तो बिहार में विपक्ष के तथाकथित महागठबंधन की करारी हार का रहस्य समझ में आ सकता है। यह अलग बात है कि विपक्ष इसे कितने स्वस्थ तरीके से अंगीकार कर पाता है या चुनाव आयोग की भूमिका को विवादास्पद बना कर तथा अपनी शर्मनाक हार का ठीकरा उस पर फोड़ कर खुद की नाकामी, अदूरदर्शी योजना तथा आपसी खींचतान पर पर्दा डाल देना चाहता है !
लिहाजा बड़े स्तर पर यह स्वीकार किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी और चिराग पासवान तथा पूर्व मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ” चाणक्य नीति ” तथा नीतीश कुमार की ” चंद्रगुप्त वाली भूमिका ” को कामयाब बनाने में ऐसा निर्णायक आधार तैयार कर दिया कि जीत – हार का अंतर बहुत बढ़ गया ! रही – सही कसर योगी जी और ओवैसी जी ने पूरी कर दी। नतीजा अविश्वसनीय नतीजे के रूप में सामने आया !
प्रशांत किशोर ने इस चुनाव में अपने अघोषित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया, यह बहुत कम लोग जान सके ! बिहार में जो होना था, वह हो चुका है ! अब वहां परिणाम बदल नहीं सकता है। हां, केंद्र का विपक्ष अन्य राज्यों में आगामी विधान सभा के चुनावों में इससे सबक सीख सकता है और केंद्र का सत्ता पक्ष अपना आत्मविश्वास और बढ़ा सकता है। जनता को जनोन्मुखी सरकार चाहिए। उसका मन परिवारवाद और जातिवाद से भर चुका है। उसे विवाद नहीं विकास चाहिए। उसे परिवार नहीं परिणाम चाहिए। उसे हर मां और हर बेटी के लिए सम्मान चाहिए !












