हरेन्द्र प्रताप
धर्मेन्द्र ! असंख्य सपनों का राजकुमार ! उनका आना करोड़ों कलियों का खिल जाना ! उनका जाना करोड़ों दिलों में दर्द दर्ज़ हो जाना ! करोड़ों बचपन का वह चहेता ‘ ही मैन ‘ ! करोड़ों युवा दिलों का वह शर्मिला रोमांटिक नौजवान ! करोड़ों आम लोगों की वह पहली पसंद ! सूर्योदय की पहली किरण सी उनकी बिखरती – थिरकती मुस्कान ! उनके नाम से पूरी फिल्म इंडस्ट्री पूजी जाती रही ! उनके नाम से उनकी हर फिल्म चलती रही ! लोग फिल्म देखने नहीं, उन्हें देखने जाते थे ! उनके साथ हेमा मालिनी की जोड़ी बनते ही सुनहरे पर्दे पर अविस्मरणीय स्वप्निल परीकथा का जुनून दशकों तक दर्शकों के मन-मस्तिष्क में छाया रहा ! भारतीय फिल्म उद्योग से यदि देवानंद और धर्मेन्द्र को अलग कर दिया जाए तो तब की सारी फिल्मी दुनिया फीकी पड़ जा सकती है ! ये दोनों सम्पूर्ण नायक थे जिन्हें कुदरत, तब के परिवेश, कला – वैविध्य और लोगों की दीवानगी ने महानायक बना दिया था ! दिलीप कुमार, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन भी तकरीबन उसी श्रेणी के महान कलाकार रहे ! लेकिन धर्मेन्द्र इन सब से अलग कहीं अधिक पूर्ण, संतुष्ट और लोकप्रिय दिखे!
मुझे बचपन में धर्मेन्द्र की वे फिल्में अच्छी लगती थीं जिनमें उनका अभिनय दारा सिंह जैसा होता था ! मेरा गांव मेरा देश इसमें सर्वोपरि है। फिर जब मैं बड़ा हुआ तो कहानी किस्मत की, आया सावन झूम के, दोस्त, आंखें और शोले जैसी फिल्में अच्छी लगीं। जब परिपक्व हुआ तो सत्यकाम, अनुपमा, काजल और चुपके-चुपके जैसी फ़िल्मों ने प्रभावित किया। धर्मेन्द्र की फिल्मों में कथा से लेकर अभिनय तक में दिलचस्प विविधता रही। यही कारण है कि हर वर्ग और हर आयु के वे चहेते हीरो थे। शांत, गंभीर, विद्रोही, साधारण, खास, गरीब, अमीर, देशभक्त, जासूस, भाई, दोस्त, देवर जैसे विविध किरदारों की लंबी फेहरिस्त है जिसमें धर्मेन्द्र फिट हो जाते थे। लंबे समय तक अभिनय की दुनिया में शीर्ष पर रहने के कारण वे अपने – आप में एक सम्पूर्ण इंडस्ट्री भी बन चुके थे। फिल्म इंडस्ट्री में हजारों लोगों के लिए उन्होंने न सिर्फ रोज़गार पैदा किया बल्कि उन सबको सफल भी बनाया। वे पूरी टीम को लेकर चलते थे और पूरी टीम का भला सोचते थे। उन्होंने परिवार से अधिक समाज को दिया। एक दोस्त, एक अभिनेता और एक सांसद के रूप में उन्होंने जो योगदान समाज के उत्थान में दिया, वह अद्वितीय है ! यही कारण है कि अकेली फिल्मी दुनिया या अकेला बीकानेर ही नहीं, उनसे जुड़ा हर व्यक्ति अब भौतिक रूप से उनके इस संसार से बिछुड़ने के बाद रो रहा है।
पिछली सदी में सन् अस्सी के दशक में मुझे उनके बेहद नजदीकी दोस्त और दोस्त फिल्म में उनके दोस्त शत्रुघ्न सिन्हा ने तब की बम्बई में उनसे पहली बार मिलवाया था। वह सपनों के हकीकत में बदलने का लम्हा था ! हकीकत फिल्म का हीरो सामने हकीकत बन कर खड़ा था ! मैं अचंभित देख रहा था ! क्या सादगी और क्या साफगोई ! सब कुछ अविश्वसनीय सा विश्वसनीय !
हालांकि वहां तक पहुंचने का आधार पटना के तब के हिंदुस्तान अख़बार के पत्रकार एवं साहित्यकार अवधेश प्रीत तथा मुंबई की फिल्मी दुनिया के एक युवा पत्रकार ने मेरे लिए तैयार किया था। शत्रुघ्न जी ने उस पूरे घटनाक्रम में ‘ उत्प्रेरक ‘ की भूमिका निभाई थी। तब धर्मयुग के दफ्तर में धर्मवीर भारती जी और फिल्मी सेट पर शत्रुघ्न सिन्हा जी से भी मेरी पहली मुलाकात हुई थी। फिल्मी दुनिया में तब मैंने समाचार पत्र नवभारत टाइम्स, माधुरी पत्रिका और अन्य फिल्मी पत्रिका तथा फिल्म पत्रकारों का अद्भुत सम्मान देखा था ! सबके सबसे बड़े चहेते थे तब शत्रुघ्न सिन्हा ! वे हर संभव मदद के लिए सदैव तैयार रहते थे ! मुझे याद है कि एक फिल्मी पत्रकार के सौजन्य से उन्होंने एक ही दिन में एक ही स्टूडियो में नाकाबंदी फिल्म की शूटिंग में धर्मेन्द्र जी से, शेरनी फिल्म की शूटिंग में अपनी नायिका श्रीदेवी जी से और एक तीसरी फिल्म की शूटिंग में जैकी श्रॉफ जी से अविस्मरणीय मुलाकात करवाई थी। वहीं से बीजारोपण हुआ था धर्मेन्द्र जी से दूसरी मुलाकात का जो सेंटूर होटल में पाप की दुनिया फिल्म के कार्यक्रम में आकार ले सका था ! तब पूरी फिल्मी दुनिया के आधे से अधिक हीरो, हीरोइन, विलेन, कॉमेडियन, अन्य कलाकार से वहीं रात भर चली पार्टी में मुलाकात होती रही। वहां मैंने दो दोस्त धर्मेन्द्र और शत्रुघ्न सिन्हा की दरियादिली पहली बार देखी ! अद्भुत थी वह ! शोले में यदि शत्रुघ्न सिन्हा की कमी खटकती है तो सही चुभती है। उस पार्टी में सनी देओल, चंकी पांडेय और नीलम तब की नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे ! शेखर सुमन संघर्ष कर रहे थे ! मीडिया के गिने-चुने लोग ही उसमें आमंत्रित थे ! तब धर्मेन्द्र अपने लिए नहीं अपने बेटे और अन्य युवाओं के लिए रास्ता तैयार कर रहे थे।
जब भी कोई बड़ी हस्ती इस दुनिया से रुखसत होती है तो हम बड़े ही स्वाभाविक भाव से कह उठते हैं कि एक युग चला गया ! दरअसल युग जाता नहीं है बल्कि थोड़े समय के लिए थम जाता है, सहम जाता है, सदमे में डूब जाता है ! धर्मेन्द्र जी के जाने के बाद भी ऐसा ही महसूस किया जा रहा है ! धर्मेन्द्र युग निर्माता थे ! धर्मेन्द्र चले गए ! अपना पूरा युग यहां छोड़ गएऊ ताकि अनेक कलाकार – इंसान धर्मेन्द्र बन सकें ! उनसे भी आगे निकल सकें ! धर्मेन्द्र सलमान खान से लेकर आज की नई पीढ़ी के हर उभरते कलाकार का मनोबल बढ़ाते रहे ! यही कारण है कि एक सितारे के बिछुड़ने के बाद आज धरती और आकाश दोनों गमगीन हैं ! आज मौसम बेईमान नहीं, उदास है !













