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जिहादी आतंक की विभीषिकाएँ और संकटग्रस्त राष्ट्र की चुनौतियों से निपटता भारत

News Desk by News Desk
November 11, 2025
in संपादकीय
जिहादी आतंक की विभीषिकाएँ और संकटग्रस्त राष्ट्र की चुनौतियों से निपटता भारत
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श्लोक ठाकुर, युवा पत्रकार
फरीदाबाद से लाल क़िला तक: कैसे ‘व्हाइट-कॉलर’ जिहाद ने आतंक की परिभाषा बदल दी है। भारत ने पिछले एक दशक में आतंकवाद के कई रंग देखे हैं। कश्मीर की घाटियों से लेकर मुंबई की गलियों तक। लेकिन हाल की घटनाओं ने यह साफ़ कर दिया है कि अब आतंक की शक्ल-सूरत बदल रही है। वह सिर्फ़ बंदूक या बम लेकर चलने वाले अनपढ़ युवकों तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि सफ़ेद कोट, लैपटॉप और लैब तक पहुँच गया है। फरीदाबाद में हुई ताज़ा कार्रवाई इस बदलते ख़तरे की सटीक मिसाल है। यहाँ एक डॉक्टर के घर से 2,900 किलो विस्फोटक और अत्याधुनिक हथियार बरामद हुए। जांच एजेंसियों का कहना है कि यह कोई आकस्मिक खोज नहीं थी, बल्कि एक सुविचारित नेटवर्क का हिस्सा था जिसका लक्ष्य था भारत के दिल, लाल क़िले पर हमला। लाल क़िला भारत के इतिहास का गौरव है। वह जगह जहाँ से देश ने अपने स्वतंत्रता दिवस पर हर साल अपने सामर्थ्य और एकता का संदेश दिया है। इसीलिए यह प्रतीकात्मक रूप से भारत की आत्मा पर चोट करने की कोशिशों का बार-बार निशाना बना है। 2000 में जब दिल्ली में आतंकियों ने लाल क़िले पर हमला किया था, तब वह एक ऐसा क्षण था जिसने देश की सुरक्षा प्रणाली की सीमाएँ उजागर कर दीं। लेकिन 2025 के भारत में तस्वीर अलग है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सुरक्षा एजेंसियाँ अब ‘रिएक्टिव’ नहीं, बल्कि प्रोएक्टिव हैं। साजिशें अब फूटने से पहले ही नाकाम कर दी जाती हैं।

सफ़ेद कोट में छिपा साया: शिक्षित आतंक का नया चेहरा
इस बार आतंक ने न नारे लगाए, न हथियार लहराए। उसने सफ़ेद कोट पहना, और समाज का एक जिम्मेदार नागरिक दिखने की कोशिश की। यह ‘व्हाइट-कॉलर जिहाद’ का वह रूप है, जो खुफिया एजेंसियों के लिए नई चुनौती बन चुका है। विश्लेषकों का कहना है कि यह वह दौर है जहाँ “कट्टरता” सिर्फ़ धर्म या गरीबी से नहीं, बल्कि विचारधारा और तकनीकी दक्षता के संगम से जन्म ले रही है। जिन लोगों के पास विज्ञान, इंजीनियरिंग या चिकित्सा की पढ़ाई है, वही अब विस्फोटक बनाने, एन्क्रिप्शन संभालने और डिजिटल नेटवर्क चलाने में सक्षम हो रहे हैं। गुजरात की “राइसिन साजिश” इसका एक और प्रमाण थी। वैज्ञानिक रूप से तैयार किए गए राइसिन पॉयज़न का उपयोग बड़े पैमाने पर करने की तैयारी थी। लेकिन एटीएस ने इस साजिश को समय रहते नष्ट कर दिया। एक राजनीतिक तुलना भी इस विमर्श का हिस्सा है। कांग्रेस के शासनकाल में, आतंकवाद को अक्सर “गरीबी की उपज” बताया गया। लेकिन अब यह तर्क बिखर गया है। फरीदाबाद और गुजरात की घटनाएँ साफ़ दिखाती हैं कि ये साजिशें गरीबों की नहीं, बल्कि विचारधारा से विषाक्त शिक्षित वर्ग की हैं। बीते दशक में देश ने देखा कि कैसे यूपीए काल में एक के बाद एक धमाके होते रहे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, वाराणसी, अहमदाबाद। हर घटना के बाद बयान आते थे, “हम आतंक के खिलाफ़ सख्त हैं”, लेकिन कोई ठोस रोकथाम नहीं हुई। यह वही दौर था जब “हिंदू आतंकवाद” जैसे शब्द गढ़े गए जिससे असली जिहादियों से ध्यान हटाया जा सके और राजनीतिक समीकरणों को साधा जा सके।

सशक्त नेतृत्व, निर्णायक नीति और खुफिया सतर्कता ने बदला सुरक्षा का परिदृश्य
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में आतंकवाद की घटनाएँ कम हुई हैं। जब 2014 में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तब देश आतंकवाद और उग्रवाद की कई परतों से जूझ रहा था। कश्मीर घाटी में बढ़ती हिंसा, सीमापार से होने वाली घुसपैठ, माओवादी हमले, और शहरी इलाक़ों में लगातार हो रहे धमाके। पिछले एक दशक में तस्वीर नाटकीय रूप से बदली है। अब भारत न केवल आतंकी घटनाओं में कमी देख रहा है, बल्कि उसकी रोकथाम और जवाबी नीति भी दुनिया के सामने एक मिसाल बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में देश में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। केंद्र सरकार के आंकड़ों और सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के बाद से जम्मू-कश्मीर, माओवाद प्रभावित इलाकों और उत्तर-पूर्व के राज्यों में हिंसक घटनाओं में तेज़ी से गिरावट दर्ज की गई है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “भारत अब ‘आतंक से पीड़ित राष्ट्र’ नहीं, बल्कि ‘आतंक का जवाब देने वाला राष्ट्र’ बन चुका है।” सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 2014 से 2023 के बीच आतंकी घटनाओं में करीब 70 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं सुरक्षाबलों की शहादतें 60 प्रतिशत घटकर अब ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर हैं। नियंत्रण रेखा (LoC) पर घुसपैठ की कोशिशें भी पिछले दस वर्षों में आधी रह गई हैं। इसका कारण सीमापार निगरानी में तकनीकी सुधार और त्वरित जवाबी कार्रवाई को बताया जा रहा है। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि 2010 में जहां 96 ज़िले माओवादी हिंसा से प्रभावित थे, वहीं अब यह संख्या घटकर 45 से भी कम रह गई है। झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा के कई इलाकों में अब सामान्य जीवन लौट आया है। उत्तर-पूर्व में भी बोडो, करबी आंगलोंग और ब्रू समुदायों के साथ हुए शांति समझौतों से दशकों पुरानी उग्रवाद की समस्या थमने लगी है। 2016 के उरी हमले और 2019 के पुलवामा हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को निर्णायक मोड़ माना जाता है। इन घटनाओं ने यह संदेश दिया कि भारत अब “घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने वाला नहीं, बल्कि आतंकवाद पर प्रहार करने वाला” देश बन चुका है।

मोदी काल: खुफिया एजेंसियों का आत्मविश्वास और स्वतंत्रता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में सुरक्षा एजेंसियों को एक ऐसा माहौल मिला है जहाँ राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं, बल्कि परिणाम की अपेक्षा है। यही कारण है कि एनआईए, एटीएस और आईबी जैसी संस्थाएँ अब स्वतंत्रता से काम कर पा रही हैं। फरीदाबाद की कार्रवाई में तकनीकी खुफिया का बड़ा योगदान बताया जा रहा है। डार्क वेब, एन्क्रिप्टेड चैट्स और डिजिटल फंडिंग चैनल की ट्रैकिंग से एजेंसियों ने आतंकियों को सटीकता से पकड़ा। कांग्रेस के दौर में जहाँ अधिकारी भय में काम करते थे, वहीं आज वे राष्ट्र के समर्थन से काम करते हैं। यही अंतर है कमज़ोर राजनीति बनाम मज़बूत शासन का। फरीदाबाद की कार्रवाई से कुछ ही समय पहले मुरशीदाबाद में सीमा सुरक्षा बल ने 150 से अधिक बम बरामद किए थे। ये घटनाएँ एक पैटर्न बनाती हैं कट्टरपंथी नेटवर्क अब सीमाओं से भीतर तक सक्रिय हैं। बांग्लादेश सीमा से हथियारों और नकली नोटों की तस्करी लंबे समय से चिंता का विषय रही है। लेकिन अब यह सिर्फ़ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि आतंकी नेटवर्क की रीढ़ बन चुकी है। बीजेपी सरकार ने इस खतरे को तुष्टीकरण की बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिए से देखा। वहीं कांग्रेस का रुख अक्सर “वोट बैंक संवेदनशीलता” तक सीमित रहा। मोदी सरकार ने खुफिया एजेंसियों को न केवल परिचालन स्वतंत्रता दी बल्कि उन्हें आधुनिक तकनीक से लैस किया। NIA, RAW और IB के बीच डिजिटल समन्वय बढ़ा, LoC पर ड्रोन निगरानी लागू की गई और साइबर आतंकवाद से निपटने के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को सशक्त किया गया। इससे देश में कई आतंकी साजिशें शुरुआती चरण में ही नाकाम की जा सकीं.

व्हाइट-कॉलर जिहाद: नया मोर्चा, नई रणनीति
सुरक्षा विशेषज्ञ इसे “अर्बन कट्टरता का युग” कह रहे हैं, जहाँ आतंकी अब स्लम या सीमावर्ती गांवों में नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट दफ़्तरों, मेडिकल संस्थानों और साइबर कैफ़े में पनपते हैं। इस खतरे से निपटने के लिए पारंपरिक पुलिसिंग नहीं, बल्कि डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर मॉनिटरिंग की ज़रूरत है। मोदी सरकार की ‘डिजिटल सुरक्षा’ पर फोकस इसी दिशा में देखा जा सकता है। जब बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद कांग्रेस नेतृत्व की संवेदनशीलता “आतंकियों के प्रति सहानुभूति” के रूप में दिखी, तब देश ने पहली बार सोचा कि क्या वोट बैंक की राजनीति राष्ट्रहित से बड़ी हो गई है? आज वही सवाल फिर उठ रहा है, लेकिन अब जवाब अलग है। मोदी सरकार का संदेश स्पष्ट है जो भारत को धमकाएगा, उसे खोजकर समाप्त किया जाएगा।

नया भारत: जो झुकता नहीं, बल्कि प्रहार करता है
लाल क़िले पर हमला केवल पत्थर या इस्पात पर नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला था। लेकिन आज का भारत वह नहीं है जो डर जाए या देर से प्रतिक्रिया दे। आज देश के पास ऐसा नेतृत्व है जो कहता है “आतंक की साजिशें परिपक्व नहीं होंगी, वे जन्म लेते ही ढह जाएँगी।” यही है नया भारत — सतर्क, आत्मविश्वासी और निर्णायक। अब हम केवल शोक नहीं मनाते, बल्कि साजिशों को मिटाते हैं।फरीदाबाद की घटना सिर्फ़ एक सुरक्षा ऑपरेशन नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संदेश है कि अब आतंकवाद चाहे लैब में पले या लैपटॉप में, भारत उसे हर मोर्चे पर ध्वस्त करने को तैयार है।

Tags: Aadil Rathereducated terroristsFaridabad raidModi government securitynational security IndiaNIA probered fort threatterror network explainerurban extremismwhite-collar jihadwhitel-coat jihad india
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