नयी दिल्ली,12 जून (कड़वा सत्य) प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा ने बुधवार को कहा कि राज्यों को आपदा के समय न केवल खुद की और अपने लोगों की बल्कि अन्य राज्यों के आस-पास के जिलों की सहायता करने की क्षमता विकसित करनी होगी।
डॉ.मिश्रा ने आज यहां संपन्न हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राहत आयुक्तों, सचिवों (आपदा प्रबंधन) और राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ), नागरिक सुरक्षा, होम गार्ड तथा अग्निशमन सेवाओं के वार्षिक सम्मेलन में यह बात कही। उन्होंने दो दिन चले सम्मेलन के समापन सत्र की अध्यक्षता की। केन्द्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने भी गृह मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इस सत्र में भाग लिया।
उन्होंने कहा,“भारत ने आपदाओं के समय अन्य देशों की सहायता करने और उनका सामना करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन और आपदा जोखिम प्रबंधन पर नए जी-20 कार्य समूह जैसे हमारे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की पूरी दुनिया में सराहना हुई है। हम दुनिया भर में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में प्राप्त की गई उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं, लेकिन हम संतुष्ट नहीं रह सकते और हमें भविष्य के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है।”
उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन स्थानीय स्तर तक पहुंचना चाहिए, प्रत्येक शहर, कस्बे, गांव और बस्ती से लेकर परिवार स्तर तक आपदाओं से निपटने के लिए बुनियादी जागरूकता, क्षमता और संसाधन होने चाहिए।
डॉ. ने कहा कि बार-बार होने वाली और मौसमी समस्याओं से बचने के लिए इन समस्याओं के प्रभावों को कम करने के उपायों का कैलेंडर तैयार किया जाना चाहिए। नालियों से गाद निकालने जैसे बुनियादी उपायों को नियमित रूप से लागू करना और शहरों के ठोस अपशिष्ट के बेहतर निपटान से शहरी बाढ़ की समस्याओं से निपटने में मदद मिल सकती है।आपदा प्रबंधन का फोकस अब प्रतिक्रिया से आपदा के प्रभावों को कम करने पर केंद्रित हो रहा है। भविष्य के लिए ऐसी योजनाएं बनाने की आवश्यकता है, जिसमें आपदा के प्रभावों को कम करना के साथ-साथ आपदा से जल्द उबर पाने की क्षमता जैसे महत्वपूर्ण स्तंभ शामिल हों।
भारत में आपदा जोखिम निधि के रूप में संस्थागत तंत्र है। विकसित भारत के अधिकांश बुनियादी ढांचे का निर्माण अभी होना बाकी है। अगले कुछ वर्षों में बुनियादी ढांचे में बहुत विस्तार होने वाला है। आवश्यकता है कि भविष्य के सभी बुनियादी ढांचों में ब्लूप्रिंट तैयार करने के चरण में ही आपदा से उबरने के तंत्र को शामिल किया जाए।
प्रारंभ में ही चेतावनी देने की प्रणाली, कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल, उपग्रह के माध्यम से झीलों की समय-समय पर निगरानी, बचाव और राहत के लिए अत्याधुनिक उपकरण आदि के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा आदि का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भविष्य में तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग होने वाला है।
ऐसी घटनाओं के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है जो अर्थव्यवस्था, समाज और स्वास्थ्य में बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा कर सकती हैं, जैसे कि कोविड 19 ऐसी घटनाओं से सीखने की ज़रूरत है और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम इन घटनाओं से मिली सीख कभी ना भूलें।
उन्होंने कहा,“ आपदाओं का प्रबंधन किसी एक एजेंसी, विभाग या मंत्रालय द्वारा अकेले नहीं किया जा सकता। इसके लिए पूरी सरकार और पूरे समाज के सहयोग की आवश्यकता है। हमें अपने प्रयासों को व्यापक बनाने की आवश्यकता है, जिसमें न केवल आपदा प्रबंधन एजेंसियां, बल्कि अन्य हितधारक एजेंसियां भी शामिल हों।सिल्कयारा सुरंग बचाव अभियान सरकार की सभी एजेंसियों के एकजुट होने का प्रमाण है, जिन्होंने फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को एक साथ रखा। राज्यों को न केवल खुद की और अपने लोगों की बल्कि अन्य राज्यों के आस-पास के जिलों की सहायता करने की क्षमता विकसित करनी होगी।”
सम्मेलन में राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों,केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, संगठनों तथा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के 300 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
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कड़वा सत्य