( द्विवेदी)
नयी दिल्ली, 29 जुलाई (कड़वा सत्य) केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के प्रसिद्ध सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता और शिक्षा एवं संस्कृति के लिए विद्यार्थियों के आंदोलन (एसईसीएमओएल) के नेता सोनम वांगचुक ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में केवल स्थानीय आवश्यकताओं के हिसाब से ही विकास कार्य कराये जाने चाहिये ताकि क्षेत्र की पारिस्थितिकी और स्थानीय लोगों का भविष्य संकट में न पड़े।
श्री वागंचुक ने यहां ‘यूनीकड़वा सत्य’ से विशेष बातचीत में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में प्राकृतिक विपदाओं को लेकर बढ़ती चिंताओं का उल्लेख किया और आधुनिक पीढ़ी से ‘दिमाग के साथ-साथ दिल से भी सोच कर चलने” की जरूरत पर बल दिया। भारत में हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन और पहाड़ खिसकने की बढ़ती घटनओं के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘हिमालय क्षेत्र पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है। हिमालयी क्षेत्रों में केवल स्थानीय आवश्यकताओं के हिसाब से ही विकास कार्य कराये जाने चाहिये ताकि पारिस्थितिकी और स्थानीय लोगों का भविष्य संकट में न पड़े।
श्री वागंचुक ने कहा, “बिना लगाम के अंधाधुध विकास ठीक नहीं है। विकास की प्रक्रिया और पथ निर्धारित करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए बल्कि सहनशीलता और समझदारी से चलना चाहिए। ”
उन्होंने लोगों की राय से विकास की राह चुनने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा, “अगर हम स्थानीय लोगों के साथ राय मशविरा करके लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं तो व्यापार के प्रति सहानुभूति बढ़ती है।”
समाज सुधारक वांगचुक ने चीन की ओर से पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चौड़ी सड़कें और अन्य विकास कार्यों के संदर्भ में पूछे जाने पर कहा कि भारत सरकार की ओर से लद्दाख क्षेत्र में किये जा रहे विकास के प्रयास बेहतर हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पहाड़ों को बड़े पैमाने पर काटकर चार-चार लेन की सड़क बनाना संकट पैदा कर सकता है और पहाड़ी क्षेत्रों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘नाज़ुक पहाड़ियां बड़े पैमाने के विकास का भार सहन करने में अक्षम हैं। इसलिए इसे सीमित रखा जाए।”
उन्होंने एक सवाल पर कहा, “मनुष्य को दिल की सुनकर समस्याओं को सुलझाना चाहिए। दिल से किया गया काम ही प्रकृति को बचा सकता है।”
श्री वांगचुक ने कहा कि हम जब पूरे मन से अपने यहां के लोगों को सुविधायें उपलब्ध कराते हैं तो उनसे हमारी संवेदनाएं जुड़ी होती हैं। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र का वातावरण और परिवेश स्वच्छ रखने के संबंध में बातचीत करते हुए आस्ट्रेलिया के नवप्रवर्तक रसल कॉलिन्स द्वारा विकसित ‘हिमालयन रॉकेट स्टोव’ के बारे में बताते हुये कहा कि इससे हिमालय़ी क्षेत्र का पर्यावरण स्वच्छ तो रहता ही है और साथ ही यहां के लोगों का जीवन भी सरल होता है।
उन्होंने कहा कि यह स्टोव खासतौर पर महिलाओं के लिये बहुत उपयोगी है, इससे एक तो ईंधन की बचत होती है, दूसरा इसमें धुआं कम उठता है जिससे गृहणियों की आंखों और श्वसन तंत्र की बीमारियों का खतरा भी कम होता है।
श्री वांगचुक ने कहा, “हिमालय और उसके आस-पास के क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन बहुत ज्यादा प्रभावी है यानी वहां इसे घटित होते हुए देखा जा सकता है। इसके कारण हिमालय को काफी नुकसान पहुंच रहा है और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका बहुत ज्यादा असर पड़ा है इसलिए हमें ना सिर्फ जलवायु परिवर्तन का स्थायी समाधान विकसित करना होगा बल्कि उसे बड़े पैमाने पर लागू भी करना होगा।”
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कड़वा सत्य